फेफड़े गुर्दे कहने लगे अब रूक जा साथी फेफड़े गुर्दे कहने लगे अब रूक जा साथी
रोती है कभी कभी बच्चा बन कर रोती है कभी कभी बच्चा बन कर
मेरी हर सांस बसती हैं तेरे सीने में मेरी हर सांस बसती हैं तेरे सीने में
तुम न घर पे, रौशनी कहाँ दर दरीचे कोठे जीने में तुम न घर पे, रौशनी कहाँ दर दरीचे कोठे जीने में
तू होकर अपना आज गैर - सा लग रहा तू होकर अपना आज गैर - सा लग रहा
कोई आकर उसे सीने से चिपका लेता! कोई आकर उसे सीने से चिपका लेता!